Monika garg

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लेखनी कहानी -06-Sep-2022# क्या यही प्यार है # उपन्यास लेखन प्रतियोगिता# भाग(29))

गतांक से आगे:-


जोगिंदर ने हल्के से मुस्कुरा कर रमनी का पकड़ा हुआ हाथ दबा दिया ।रमनी भी होले से मुस्कुरा दी।वो दोनों जो चाहते थे वो काम हो रहा था ‌।

दोनों ने एक दूसरे को वरमाला पहना दी और फेरों की वेदी पर बैठ गये ।तभी रमनी के बाबू दौड़ कर आये और जोगिंदर के पैरों मे पड़ कर बोलें,"लला जी ये तो हमारा अहोभाग है  जो इस मुसीबत मे आप हमारी रमनी का हाथ थाम रहे है पर लला जी जागीरदार साहब क्या कहेंगे उनके खेतों मे काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर की लड़की उनके घर की बहू बनेगी ये वो बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे।लला जी आप रुक जाओ।"


जोगिंदर को जैसे करंट सा लगा मन ही मन जोगिंदर सोचने लगा,"ओहो चाचा क्यों कढ़ी बिगाड़ रहे हो बड़ी मुश्किल से योजना सफल हो रही है और तुम हो कि खेल बिगाड़ने आ गये ।एक बार हो जाने दो ब्याह बाद मे सब ठीक हो जाएगा।"

पर प्रत्यक्ष मे वह रमनी के बापू से मुंह बना कर बोला,"बस चाचा अब मुझ से अपनी बचपन की दोस्त का दुःख देखा नही जाता ।ये ब्याह मुझे करना ही है ।रही बात पिताजी की मुझे पता है वो बहुत गुस्सा होंगे पर अगर वो नही माने तो हम अपनी अलग दुनिया बसा लेंगे।"

अब रमनी का बापू इससे आगे क्या कहता ।वैसे वो तो खुश ही था रमनी इतने बड़े घर मे जा रही थी और लड़का भी पूरे गांव मे सबसे उपर था।

  पंडित जी ने फेरे करा दिए और रमनी विदा होकर अपने ससुराल की ओर चल दी ।रमनी का दिल जोर जोर से धड़क रहा था कि क्या पता क्या गाज गिरने वाली थी दोनों पर । लेकिन उसे अपने प्यार पर पूरा विश्वास था उसका जोगिंदर जब इतने बड़े जंजाल से छुड़ा सकता था तो क्या इस परिस्थिति से बार नहीं निकाल पायेगा।

इधर जोगिंदर के दिमाग मे भी तूफान मचा हुआ था ।इतनी बड़ी बात मतलब रमनी का ब्याह रुकवाना तो उसे आसान लगा पर पिताजी के आगे क्या तर्क रखेगा इसमे उसे नानी याद आ रही थी। हमेशा मनुष्य अपनों के आगे ही कमजोर पड़ता है फिर वो तो पिताजी की जान था बेशक जागीरदार साहब बाहर से कितने कठोर थे जोगिंदर के लिए पर अंदर से मोम की तरह पिघलते थे उसको मुसीबत में घिरा देखकर।

बै़ड बाजा बज रहा था रमनी ओर जोगिंदर जब हवेली की दहलीज पर पहुंचे तो जोगिंदर की मां बाहर निकल कर आयी और बाहर का नजारा देखकर हक्की बककी रह गई।बेटा तो अपने प्यार का ब्याह रुकवाने गया था और ये तो बहू ही ब्याह लाया ये कैसे हो गया। जोगिंदर ने मां की तरफ हाथ जोड़ दिए कि पिताजी से बचा लेना मां।

ढोल ढमाको की आवाज सुन कर जोगिंदर के पिता जब बाहर आये तो देखा बेटा बहू को दरवाजे पर लिए खड़ा था ।उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया ।वे गर्ज कर बोले,"ये क्या तमाशा लगा रखा है । क्यों रे जोगी तू ये रमनी से ब्याह कर लिये हो वो भी किससे पूछकर।"

जोगिंदर की जैसे सिट्टी पिटटी गुम हो गयी वह बस पिता जी पिताजी करता रह गया ।तभी गांव के बड़े बुजुर्ग जिनकी जोगिंदर के पिता जी खूब मान करते थे वो आगे आये ओर बोले ,"लहरी सिंह ।तूने बेटा क्या हीरा जना है ।वरना कौन ऐसे किसी मुसीबत मे पड़ी लड़की जिसकी बारात लौट जाए उससे ब्याह करता है ।नये जमाने के बच्चे अपनी पसंद से शादी करते है और यो तेरा बेटा एक अबला के लिए भगवान बनकर आया और इसका हाथ पकड़ा धन्य है तू और तेरी परवरिश ।जो गांव की इज्जत को अपनी इज्जत समझते है।"

सभी गांव वाले जोगिंदर की जयकार करने लगे।

 ये दृश्य देखकर अब जोगिंदर के पिता क्या कहते । वास्तव मे बेटे ने सहरानीय काम जो किया था उनको गुस्सा तो बहुत आ रहा था कि कुनबे वालों को हंसने का मौका मिल जाए गा ।पर वो चुप रहे और मुंह बनाकर अंदर चले गये ।

मां ने नयी बहू की आरती की और गृह प्रवेश के लिए जैसे ही रमनी चावल के लौटे को अपने दांये पांव से अंदर धकेल रही थी कि एकदम से उसे जोर से चक्कर आया और वह दरवाजे के साथ घसीटते हुए नीचे गिर गयी ।सभी एक दम से घबरा गये कि ये अचानक से क्या हो गया । कोई बोला,"बेचारी घबराहट मे बेहोश है गयी बेचारी की जिंदगी मे एकदम से इतने उतार चढाव आ गये। कोई कुछ बोल रहा था तो कोई कुछ।

पर जोगिंदर को पता था रमनी के साथ क्या हुआ है ….. चंचला वापस आ गयी थी। जोगिंदर रमनी को उठाकर अंदर ले गया और जाकर अपने कमरे मे लिटा दिया ।इन सब मे किसी का ध्यान इस ओर नही गया कि जो ओझा जी ने धागें दिए थे उसमे से एक धागा जोगिंदर की मां ने दरवाजे पर बांधा था वो जब रमनी बेहोश हो रही थी और दरवाज़े से घसीटकर नीचे गिरी थी तब वो धागा टूटकर नीचे गिर गया था ।और रमनी फेरों मे पड़ चुकी थी इस लिए भभूत का असर खत्म हो गया था। चंचला के सारे रास्ते खुल गये थे और वह घर मे प्रवेश कर चुकी थी । 

 जोगिंदर सब जान चुका था उसने हरिया के कान मे कुछ कहा और उसे बस स्टैंड की ओर भेज दिया ।और भोला को भी कुछ कहा ओर वो बाहर चला गया ।वह अपनी मां के पास आया और उन्हें एक ओर ले जाकर बताया कि मां चंचला रमनी पर आती है ।


जोगिंदर की मां एकदम से घबरा गयी और बोली," लला वो तो घरके अंदर आ ही नही सकती मैंने तो ओझा जी का दिया हुआ धागा दरवाजे पर…"

ये कहकर वह दरवाजे की तरफ दौड़ी तो देखा धागा वहां नही था उसका मन घबराने लगा,"लला अब क्या होगा वो तो रमनी को छोडेगी ही नही ।वो तुम्हारे पास किसी को बर्दाश्त नहीं कर सकती तो रमनी तो तुम्हारी ब्याहता बनकर आयी है इस घर मे ।"

जोगिंदर बोला,"यही तो डर है मां।वैसे मुझे पता है चंचला मुक्ति चाहती है तभी वह मेरे पास आयी है । मां ओझा जी बता रहे थे वो अच्छी आत्मा है उसका कोई अधूरा काम है जिस कारण वो इस योनि मे भटक रही है । मैंने कल सुबह ही नरेंद्र को तार कर दिया था वो आता ही होगा । मुझे पता है चंचला के शरीर के अवशेष उसी तेरह नंबर कमरे में दीवार मे चिने हुए है कल ही नरेंद्र ने उन्हें वार्डन की मदद से वहां से निकाल लिया होगा नरेंद्र अभी पहुंचता ही होगा चंचला की अस्थियां लेकर। मैंने हरिया को बस स्टैंड भेज दिया है और भोला को ओझा जी को लेने भेज दिया है । मुझे अहसास हो रहा है मां चंचला की आत्मा इस वक्त रमनी के अंदर ही है।"

जोगिंदर की मां का डर के मारे बुरा हाल था ।अभी अभी नयी बहू घर आयी है और ये सब हो गया।इतने मे रमनी जोर जोर से चिल्लाने लगी,"मै मैं इसे जान से मार डालूंगी इसकी हिम्मत कैसे हुई इसने मेरे सूरज के साथ ब्याह रचाया ।" यह कह कर रमनी जोर जोर से दीवारों मे सिर मारने लगी जोगिंदर ने दौड़कर रमनी के हाथ पांव रस्सी से बांधकर पलंग से बांध दिए।और बोला,"चंचला अब बस करो ।ये हंगामा अब बंद करों।मै उस जन्म में तुम्हारा सूरज  था अब सदियां बीत चुकी है ।तुम तब से उसी जन्म मे भटक रही हो। चंचला तुम समझो ।अब मै तुम्हारा सूरज नही हूं ।मेरे बहुत से जन्म हो चुके होंगे इस दौरान और तुम अभी उसी जगह पर अटक गयी हो ।मै मानता हूं तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ है । प्यार करना कोई गुनाह नही है प्यार भगवान की तरफ से बनाया गया सबसे खूबसूरत अहसास है ।और मै मानता हूं तुमने शिद्दत से सूरज से प्यार किया था तभी तो सदियों से तुम उसका इंतजार कर रही हो ।पर अब तुम आत्मा स्वरूप हो तो तुम मुक्ति की ओर अग्रसर हो जाओ।"

रमनी मे घुसी हुई चंचला सुबकने लगी ,"ओ सूरज ,मेरे सूरज तुम तो इन सदियों मे बदल गये पर मै इस सदियों के इंतजार मे खुद को वही खड़ा पा रही हूं अब मै क्या यह करूं।"

जोगिंदर रमनी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला ,"धैर्य रखो चंचला मै तुम्हे मुक्ति दिलाकर परमधाम की ओर अग्रसर करुंगा।"

इतने मे नरेंद्र आ पहुंचा हरिया के साथ उसके हाथ मे एक कलश चमक रहा था।

(क्रमशः)


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3 Comments

Shnaya

21-Oct-2022 07:01 PM

शानदार

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नंदिता राय

03-Oct-2022 10:33 PM

शानदार

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Gunjan Kamal

29-Sep-2022 12:34 PM

Nice part 👌

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